गुरुवार, 30 जून 2016

बरसो बदरवा

घनन घनन अब बरसो बदरवा
धरती का हियरा तड़पत है
खेतिहर की अंखियां हरदम
अंसुअन से अब भीगत हैं।

राह निहारे पंख पसारे
पाखी एकटक देखत हैं
अब बरसोगे तब बरसोगे
मन में आस लगावत हैं।

बिन पानी सब सूना सूना
जीव सभी अब भटकत हैं
दिखे पानी की एक बूंद
सब पूरी जान लगावत हैं।

बड़ी बेर भई बादल राजा
सावन सब कहां निहारत हैं
नैनन में अंसुअन भर भर के
सब अपनहि देह भिगोवत हैं।
0000
पूनम श्रीवास्तव


8 टिप्‍पणियां:

कविता रावत ने कहा…

बहुत सुन्दर रचना
इधर पानी गिरा उधर प्रकृति की हरियाली मन को हरा-भरा कर देती है ..

बेनामी ने कहा…

बढ़िया

Onkar ने कहा…

सुन्दर और सामयिक रचना

दिगम्बर नासवा ने कहा…

वाह ... स्वागत है बरखा का ....

रश्मि प्रभा... ने कहा…

http://bulletinofblog.blogspot.in/2016/09/4.html

Unknown ने कहा…

बहुत सुन्दर रचना

MOUTH WATERING RECIPES OF INDIA

Unknown ने कहा…

बहुत सुन्दर रचना Ad Posting Job

Unknown ने कहा…

शुन्दर शब्द रचना
http://savanxxx.blogspot.in