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रविवार, 10 मई 2015

तुम याद बहुत आती हो मां---।

तुम याद बहुत आती हो मां
तुम याद बहुत आती हो मां---।

बचपन में तुम थपकी दे कर
मुझको रोज सुलाती मां
अब नींद नहीं आने पर
तेरी याद बहुत आती है मां।

पग-पग पर तेरी उंगली थाम के
चलना हमने सीखा था मां
थक जाते थे जब चलते चलते
आंचल की छांव बिठाती थी मां।

तन पर कोई घाव लगे जब
झट मलहम बन जाती थी मां
मन की चोट न लगने देती
प्यार इतना बरसाती थी मां।

वो सारी बातें सारी यादें
अक्सर हमें रुलाती हैं मां
जो ज्ञान दिया तुमने हमको
वो हमको राह दिखाता मां।

कोई दिवस विशेष नहीं पर
हर पल तुम संग में रहती मां
हमसाया बन कर साथ हमारे
दिल में हर पल तुम बसती मां।

तुम याद बहुत आती हो मां
तुम याद बहुत आती हो मां---।
000
पूनम श्रीवास्तव





रविवार, 10 मई 2009

मातृ दिवस

मां शब्द ही अवर्णनीय,अतुलनीय है।उनके बारे में लिखना किसी के लिये सम्भ्व नहीं है।
दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि उनके लिये लिखना सागर की एक बूंद की तरह होगा।
आज मातृ दिवस पर मैं अपनी एक कविता प्रकाशित कर रही हूं।

मां
मां सिर्फ़ शब्द नहीं
पूरी दुनिया पूरा संसार है मां
अंतरिक्ष के इस पार से
उस पार तक का अंतहीन विस्तार है मां।
मां सिर्फ़ शब्द नहीं--------------------।

शिशु की हर तकलीफ़ों को रोके
ऐसी इक दीवार है मां
शब्दकोश में नहीं मिलेगा
वो कोमल अहसास है मां।
मां सिर्फ़ शब्द नहीं-------------------।

सृजनकर्ता सबकी है मां
प्रकृति का अनोखा उपहार है मां
ममता दया की प्रतिमूर्ति
ब्रह्म भी और नाद भी है मां।
मां सिर्फ़ शब्द नहीं---------------------।

स्वर लहरी की झंकार है मां
लहरों में भी प्रवाह है मां
बंशी की धुन है तो
रणचण्डी का अवतार भी है मां।
मां सिर्फ़ शब्द नहीं---------------------।

मां सिर्फ़ शब्द नहीं
पूरी दुनिया पूरा संसार है मां।
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पूनम